GDP में कृषि की घटती हिस्सेदारी
1946-47 में 51 %
1960-61 में 47.6 %
1990-91 में 29.5%
2000-01 में 22.3 %
2010-11 में 14.6%
सकल घरेलु उत्पाद ( GDP ) में कृषि की
हिस्सेदारी साल दर साल घटती ही जा रही है | आजादी के समय ” सकल घरेलु
उत्पाद ” में कृषि का हिस्सा 51 % था , पिछले साल 14.6 % अब घटकर 14 % ही
रह गया है | इसके बावजूद तेजी से सिकुड़ते कृषि क्षेत्र पर 47 % लोगों की
निर्भरता बनी हुई है | तो फिर कहाँ है , कृषि और उद्योग क्षेत्र में
भारी-भरकम निवेश और रोजगार सृजन का सरकारी वायदा ?
अब तो जब भी हम अर्थव्यवस्था या सरकारी
योजनाओं की बात करते हैं तो सरकारी विफलता के लिए आलोचना करना भी मुंह
थकाने जैसा काम लगता है | हरेक बार यह सवाल उठता है कि इस घटिया शासन /
प्रशासन के लिए हम किसको जिम्मेदार मानकर पकडें ? लेकिन हमारे
प्रधानमन्त्री अब भी अच्छे शासन यानि Good governance की बातें करते हुए
नहीं उकताते हैं | जबकि देश में केंद्र और राज्यों में से अधिकांश का शासन
ना तो अच्छा कहा जा सकता है ना ही पारदर्शी !
केन्द्र में पारदर्शिता की धज्जियाँ उडाई
जा रही है | हर दिन एक नए घोटाले के साथ जुड रही है यह सरकार | 2G के अलावा
देश के गृह मंत्री का नाम गोवा लौह अयस्क निर्यात घोटाले में भी सामने आ
रहा है | कई सारे मसलों पर सरकार और कांग्रेस पार्टी के भीतर चल रही
खींचतान रणनीति का नतीजा है जिसके कारण केन्द्रीय मंत्रिमंडल का महत्वपूर्ण
प्रशासनिक बातों के ऊपर ध्यान ही नहीं है | फलतः भारत के आर्थिक
-शैक्षिक-सामाजिक विकास का एजेंडा हासिये पर है |
कृषि के क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रहा
है और खेती सरकार के खैराती उपायों से नहीं चमकने वाली है | यूपीए -1 &
2 में सरकार ने बस लोकलुभावन मुद्दों पर ही ध्यान दिया है जो वोट खिंच
सके | पिछले आम चुनाव से ठीक पहले किसानों की ऋण माफ़ी भी इसी योजना का एक
हिस्सा था | लेकिन अब मतदाता भी इस तरह की प्रतीकात्मक योजनाओं के जाल को
बखूबी समझने लगे हैं |
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